ब्लैक विडोज जी5 की नई सीरीज है। सीरीज का प्लाट तीन उत्पीड़ित महिलाओं के जीवन को दिखाता है। यह तीन महिलाएं जो अपने शादी शुदा जीवन में खुश नहीं है। इन तीनों के पति अपने घटियापन की हदें पार कर चुके हैं। वह महिलाओं को सिर्फ और सिर्फ इस्तेमाल की चीज समझते हैं। इनके साथ जानवरों जैसा सुलूक करते हैं। इन्हें अपना ग़ुलाम समझते हैं। यह तीनों महिलाएं अपनी आजादी के लिए अपने ही पतियों की हत्या कर देती हैं। उसी हत्या की तहक़ीकात को लेखक ने 12 एपिसोड में पिरोया है।
कहानी वीरा (मोना सिंह) कविता (शमिता शेट्टी) ज्याती (स्वास्तिका मुखर्जी) को शोषित मानकर लिखी गई है। मोना सिंह जिसका पति जतिन (शरद केलकर) अपनी ही बेटी को मारने की धमकी देता है। वह अपनी पत्नी पर शक करता रहता है। कविता जो बहुत ही भोली भाली और इमोशनल है जिसका फायदा उठाकर उसका पति उसे अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए अपने दोस्तों और बिजनेसमैनों के पास भेजता है। उसे इमोशनल ब्लैकमेल करता रहता है। ज्याती इन तीनों से बड़ी है, अपने पति को लेकर उसके अंदर सबसे ज़्यादा नफरत है। वह अपने पति के लिए एक आंसु भी नहीं बहाती जो उसे बुरी तरह पीटता था। उसे बुरी तरह टॉर्चर करता था।
यह तीनों महिलाएं अपने पतियों की बॉट में बॉम लगा देती हैं। यह तीनों महिलाएं अपने आपको आजाद महसूस करती हैं। अपने पतियों के मरने पर पार्टी करती हैं।
इस हादसे को लेकिन इंस्पेक्टर पंकज ( पारम्बारता चटोपध्याय) हादसा मानने से इंकार करता है और इन तीनों महिलाओं को शक के दायरे में लेकर तहकीक़ात शुरू कर देता है। इस तहकीकात से सीरीज के कई सारे सब प्लाट निकलकर आते हैं। उस हादसे में वीरा का पति जतिन बच जाता है। इनाया (रायमा सेन) जो एक दवा बनाने की कम्पनी चलाती है। वह गैर क़ानूनी तरीके से अपनी दवावओं का हयूमन ट्रायल करती है। जिसका कनेक्शन जतिन की कम्पनी से होता है। कविता अपनी ही दोस्त ज्याती के बेटे से सबंध बना लेती है। वीरा का अपनी बेटी की दोस्त के फादर से रोमांस चल रहा है। दर्शकों के बांधे रखने के लिए लेखक और निर्देशक ने 12 एपिसोड में बहुत कुछ दिखाने का प्रयास किया है।
फैमनिज़्म के नाम पर कुछ भी
कुछ महीने पहले की बात है। इसी जी5 पर महिलाओं के उत्पीड़न और आजादी की बात करती सीरीज चुडैल आयी थी। वह सीरीज महिलाओं के मुद्दों पर इतनी गहरी चोट करती थी कि उसे बैन करना पड़ा। इस सीरीज की शुरूवात भी कुछ-कुछ वेसी ही लगती है। तीन महिलाएं जो आपस में दोस्त हैं। उन तीन महिलाओं के पति जो आपस में दोस्त हैं। उस सीरीज में भी महिलाएं अपने पतियों की हत्या करती हैं। एक पुलिस वाला उनके पीछे पड़ा होता है। यह बात अलग है कि यह सीरीज उस सीरीज से बिल्कुल अलग है।
अब इस सीरीज के किरदारों की अगर बात करें तो किरदारों का जो क्लास है। उनकी जो प्रोबल्म है वो हर महिला के दर्द को छू पाने में नाकाम रहती है। एक सीन में कविता अपनी दोस्त के बेटे से प्यार करने लगती है। उसकी दोस्त जो अपनी आजादी के लिए अपने पति को मार देती है लेकिन अपनी दोस्त को अपने बेटे के साथ सबंध बनाने से रोकती है। शमिता का किरदार एक्टिंग के स्तर पर तो ठीक लग सकता है लेकिन अगर सोचकर देखें तो बहुत कमियां उसमें नज़र आती हैं।
मोना और स्वास्तिका दोनों के किरदार अगर देखें तो बहुत ही ज़्यादा आर्टीफिशल लगते हैं। निर्देशक की इमोशन पर कोई पकड़ नहीं है। यह मानते हैं कि ज्याती ने अपने पति को मारा है उसे कोई फर्क़ नहीं पड़ता उसके मरने से लेकिन उसके बेटे को तो पड़ा होगा जिसके चेहरे पर कहीं नहीं दिखता कि उसका बाप मरा है। पुलिस इंस्पेक्टर के किरदार में पारम्बरा एक्टिंग के मामले में सबसे अलग दिखाई देते हैं। उनके अलावा शरद केलकर अपनी बाकी फ़िल्मों की तरह इसमें भी एवरेज ही दिखते हैं। शमिता शेट्टी की एक्टिंग को लेकर तारीफ करनी होगी। उन्होंने अपने किरदार पर अंत तक पकड़ बनाये रखी है। इसके अलावा मोना भी अपना काम सही कर जाती हैं।
सीरीज को सिनेमाटोग्राफी के जरिए बहुत ही सुंदर दिखाने की कोशिश की गई है। पहले ही सीन में बड़ी सी झील उसके किनारे पार्टी के सीन बड़े-बड़े से बंगले बडे-बड़े से घर सीरीज में गरीब तो कोई-दूर दूर तक दिखाई नहीं पड़ता है। सीरीज का संगीत ना बहुत ही ज़्यादा अच्छा है और ना बहुत ही कम है यानी एवरेज है। यही सीरीज के बारे में भी कहा जा सकता है।
देखें या ना देंखें?
देखने का हर किसी का अपना अलग ही नज़रिया होता है। हर किसी को ना हर चीज पसंद आती है और ना ही बुरी लगती है। कुछ चीजें या फ़िल्में ऐसी भी होती हैं जिनके बारे में ना बहुत ही ज़्यादा अच्छा कहा जा सकता है और ना बहुत ही ज़्यादा बुरा कहा जा सकता है। यह सीरीज भी कुछ वेसी ही है। यह सीरीज महिलाओं के मुद्दे को छूती है। नकली दवाओं के घोटाले को दिखाने की कोशिश करती है। एक मैट्रो सिटी में बड़े-बड़े घरों में होने वाले घटिया कामों को दिखाने की कोशिश करती है। इसके अलावा बच्चों की परवरिश की तरफ भी ध्यान खींचती हैं। अब यह सब देखने वालों की अपना नज़रिया हो सकता है कि देखकर उन्हें कैसा लगता है।
निर्देशक: बिरसा दासगुप्ता
कलाकार: आमिर अली, मोना सिंह, शमिता शेट्टी, शरद केलकर, स्वास्तिका मुखर्जी
प्लेटफार्म: जी5