दरबान को जी5 ने रिलीज किया है। फ़िल्म इंसान के अंदर छिपे संतान मोह को दर्शाती है। उसी के साथ मालिक और नौकर के बीच वफादारी और अटूट रिश्तें को दिखाने की कोशिश करती है। फ़िल्म 1 घंटा 28 मिनट की समय सीमा में दर्शकों को बहुत बार इमोशनल कर देती है। फ़िल्म बहुत बार इंसानी जजबातों को उजागर करने की कोशिश करती है।
कहानी एक खानदानी नौकर (राय चरन) शारिब हाशिमी से शुरू होती है। अन्नु कपूर अपनी आवाज में जिसकी कहानी बता रहे हैं। राय चरन एक कोयला खादान के बडे मालिक नरेन बाबु के घर में नौकरी करता है। नरेन बाबु के यहां लेकिन उन्हें कोई नौकर नहीं मानता है। लेखक ने कोयला खादानों के राष्ट्रीय करण से मालिकों पर पड़ने वाले प्रभाव से कहानी को आगे बढ़ाया है।
नरेन बाबु कोयला खादान के राष्ट्रीय करण हो जाने के बाद सब कुछ खो देते हैं। राय चरण अपने मालिक का सब कुछ बिकने के बाद गांव चला जाता है। बीस साल बाद नरेन बाबु का बेटा अनुकूल (शरद केलकर) बाप की खोई सब सम्पत्ति वापस खरीद लेता है। वह अपने बच्चे को पालने के लिए फिर से अपने खानदानी नौकर राय चरन को ले आता है।
इस बार लेकिन एक हादसा हो जाता है। राय चरन से एक दिन अचानक अनुकूल का बेटा गायब हो जाता है। रायचरन अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह नहीं निभा पाता है। रायचरन पर इल्जाम लगता है लेकिन क्योंकि वो बहुत पुराना नौकर था इसलिए मालिक उसे कुछ नहीं कहता बस घर से निकाल देता है।
फ़िल्म में अगले ही पल रायचरन को एक बच्चे के साथ दिखाते हैं। राय चरन जिसे किसी से नहीं मिलने देता है। वह उसकी पढ़ाई लिखाई में भी किसी तरह कमी नहीं आने देता है। लेकिन वह उसे अपना बेटा छोटे मालिक कहता है।
इमोशनल ड्रामा है
एक्टर महमूद की कुंवारा बाप एक बहुत ही पुरानी फ़िल्म है। यह फ़िल्म दर्शकों को रूला देती है। अक्षय कुमार की फ़िल्म जानवर भी दर्शकों को रूला देती है। इसी तरह की ही नसीरूद्दीन शाह की भी एक फ़िल्म मासूम थी। यह फ़िल्म में देखने वालों को रोने पर मजबूर कर देती है। इन सभी फ़िल्मों की कहानी दरबान की ही कहानी जैसी है। इनमें भी एक ऐसा बच्चा है जिसके मां-बाप कोई और हैं और उसे पालता कोई और है। इन सभी फ़िल्मों का अंत इस बात पर होता है कि पैदा करने वाले से पालने वाला बड़ा होता है। दरबान भी एक ऐसे ही बच्चे की कहानी है। कहानी में हर मोड पर इमोशनल ड्रामा है जो मानवीय संवेदनाओं को छू जाता है।
टैगोर ने 1891 में ‘खोकाबाबूर’ कहानी लिखी थी। उस समय के हिसाब से कहानी में बहुत सी नई चीजों के ऐड किया गया है। इस कहानी में कम्पयूटर से लेकर आधुनिक मोटर गाड़ी, बंग्ला, स्कूल सबका इस्तेमाल किया गया है। इतने समय बाद भी निर्देशक ने कहानी की मूल आत्मा को बनाये रखा है।
सिनेमाटोग्राफी गज़ब है
फ़िल्म कभी कोयले की खानदानों में उड़ते काले धुएं के दर्शन कराती है। कभी एक पुरानी सी बड़ी हवेली के दर्शन कराती है तो कभी नदी तालाबों के किनारे पर ले जाती है। कभी शहर के जीवन को दिखाती है तो कभी गांव के खेतो में लहलहाती फसलों के नजारे कराती है। कभी आसमान में नागिन की तरह फन फैलाती आसमानी बिजली को दिखाती है तो कभी पहाडों में गिरती बर्फ को दिखाती है। कभी सपाट मैदानों में भागते कदमों को दिखाती है तो कभी गहरी झील के अदंर ले जाती है। कहानी के हिसाब से फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी देखकर कम से कम सुकून मिलता है।
एक्टिंग और अच्छी हो सकती थी
फ़िल्म में समय अंतराल और घटनाक्रमों को देखते हुए लगता है कि समय की कमी रही। फ़िल्म राय चरन शारिब हाशमी के अंदर की उथल पुथल को दिखाने का काम करती है। उसके अंदर लगातार हो रहे परिवर्तन को दिखाती है। राय चरन को जिस घर में बेटे की तरह पाला गया वो राय चरन उसी घर का चराग ले उड़ा। राय चरन ने ऐसा क्यों किया? रायचरन उसे ले जाने के बाद भी छोटे मालिक की तरह ही क्यों रखता है? रायचरन आखिर वापस भी क्यों ले आता है? ऐसे बहुत सारे सवाल जो एक्टिंग से मिल जाने चाहिए थे कहीं धुंधले हो जाते हैं।
शारिब हाशमी अच्छे कलाकार हैं। उनके सामने शरद केलकर भी अच्छे कलाकार हैं लेकिन दरबान में वो दा फैमली मैन जैसा कुछ करने में नाकाम रहे। शरद केलकर को कुछ कर दिखाने के लिए स्क्रीन पर बहुत ही कम समय मिला था। उन्हें जितना समय मिला उसमें वो सिर्फ एक अच्छे मालिक की तरह ही नज़र आते हैं।
देखें ना देखें
हर किसी के देखने का अपना नज़रिया होता है। जिस तरह फ़िल्म दरबान देखने की कई खास वज़ह हैं। उस तरह फ़िल्म ना देखने की कोई खास वज़ह नहीं मिलती है। फ़िल्म साहित्यक लगती है। फ़िल्म किसी भी तरह के हीरोइज़्म से बचकर देखने वालों के जज़बातों को छूती है। फ़िल्म कई बार देखने वालों की आंखे गीली कर देती है, तो कई बार हल्का-हल्का गुजृदगुदाने की कोशिश करती है। फ़िल्म इसलिए बोर नहीं करती है कि उतना समय ही नहीं है।
निर्देशक: बिपिन नाडकर्णी
कलाकार: शारिब हाशमी, शरद केलकर, रसिका दुग्गल, फ्लोरा सैनी, हर्ष छाया
प्लेटफार्म: जी5