लूडो फ़िल्म की एक शब्द में अगर तारीफ की जाये तो यह वो फ़िल्म है जो कई सालों में कोई एक बनती है। इस फ़िल्म के निर्देशक अनुराग बसु ने फ़िल्म की सारी अहम जिम्मेदारियां खुद निभाई हैं। वह इस फ़िल्म के प्रोडयूशर, लेखक, निर्देशक तो हैं ही इस फ़िल्म के सिनेमाटोग्राफर भी हैं। दर्शकों को कहानी बताने वाले सूत्रधार भी हैं।
अनुराग बसु अपने तरीके का सिनेमा बनाने वाले अकेले आदमी हैं। उन्होंने कम फ़िल्में बनायी हैं लेकिन जितनी बनायी हैं वह अलग ही पहचानी जाती हैं। वह एक फ़िल्म में बस एक ही आदमी की कहानी नहीं कहते। वह एक आदमी के सहारे से कई आदमियों की कहानी कहते हैं। वह अपनी फ़िल्म के हर किरदार पर काम करते हैं। वह लाइफ इन मेट्रो, बर्फी, जग्गा जासूस हो, या फिर हाल फ़िलहाल में आयी लूडो हो।
लूडो देखते हुए कई बार लगता है कि एक आदमी आखिर इतना सब कुछ कैसे सोच सकता है। फ़िल्म की कहानी लूडो के खेल पर आधारित है। अनुराग के मुताबिक दुनिया लूडो की एक बिसात है। दुनिया में हर इंसान एक गोटी है। हर गोटी एक दूसरी गोटी को काट रही है। हर गोटी का पासा कुदरत के पास है। इंसान पाप और पुण्य की सीमा में बंधा हुआ है जबकि उसमें इतनी कुव्वत ही नहीं कि वो पाप और पुण्य के समीकरण को समझ पाये। इसे समझाते हुए ऋषि मुनी चले गये। फ़िल्म लूडो की कहानी लूडो गेम के जरिये ही आसानी से समझी जा सकती है।
खेलने वाले
फ़िल्म के एक सीन में अनुराग बसु और राहुल बग्गा लूडो खेल रहे हैं। यही दोनों फ़िल्म के सूत्रधार हैं। राहुल बग्गा फ़िल्म के बारे में बताते हुए सवाल कर रहे हैं। अनुराग बसु जवाबों में जीवन की फलॉसफी को समझा रहे हैं। वह पाप और पुण्य को समझाते हैं कि इतने लोग कोरोना में मर गये वो सब के सब पापी थे क्या? वह पाप और पुण्य को समझाने के लिए महाभारत के अंतिम सार का उदहारण देते हैं। महाभारत का युद्द ख़त्म होने के बाद पांडव जब स्वर्ग में पहुंचे तो दुर्योधन पहले ही स्वर्ग में बैठा था। दुर्योंधन जबकि दुनिया की नज़रों मे पापी था।
अनुराग बसु ने पूरी फ़िल्म में पाप और पुण्य के बीच फसे जीवन के रहस्य को समझाने की कोशिश की है। इस फिलॉसफी को समझाने के लिए उन्होंने पांच किरदारों के सहारे लूडो गेम का मेटाफर लिया है। एक सफेद पासा लूडो में जिस से खेल शुरू होता है और सभी गोटियां चली जाती हैं। इसके अलावा हरी,नीली, पीली, लाल रंग की चार गोटियां हैं। हर गोटी की अलग फिलॉसफी और अलग कहानी है जो आपस में एक दूसरे को काटतीं हैं।
सफेद पासा
लूडो गेम की सभी गोटियों में सफेद पासा सबसे ज़्यादा पावरफुल होता है। पासे से ही गेम शुरू होता है उसी से ख़त्म होता है। हर गोटी की किस्मत उसके पास होती है। वह किस गोटी को कब कटवा दे और किस गोटी को कब बचा दे। सब उसी के नम्बरों का खेल है। फ़िल्म में उस पासे का मेटाफर सत्तु भय्या (पंकज त्रिपाठी) हैं।
पकंज त्रिपाठी जिनका हर किरदार पिछले किरदार के लिए एक चुनौती होता है। अभी मिर्जापुर के कालीन भय्या को लोग भूले नहीं थे कि अब सत्तु भय्या आ गये।
लूडों की कहानी में सत्तु भय्या कुछ हीरे पाने के लिए एक बिल्डर भिवंडी की हत्या कर देते हैं। यहां से गेम शुरू होता है। इस हत्या से चार और किरदार जुड़ते हैं और जिस तरह से वो जुड़ते हैं फ़िल्म का असल मजा उसी मे है। उस पर भी गाना ‘ओ बेटा जी’ मन मोह लेता है।
पीली गोटी
पीली गोटी हमेशा अपना बचाव करती रहती है। गेम में पीली गोटी ना किसी को काटती है और ना ही किसी का गेम बिगाड़ती है। फ़िल्म में वो गोटी (आकाश चौहान) आदित्य रॉय कपूर हैं। आदित्य रॉय कपूर ने मिमीकरी कलाकार का किरदार निभाया है। इस फ़िल्म में वह इतने मासूम और प्यारे शायद ही किसी और फ़िल्म में दिखे हों। वह अंत तक अपनी किरदार के रूटीन के बनाये रखने में कामयाब रहे हैं। वह हर सीन में नो सान्या मल्होत्रा पर एक नम्बर आगे ही रहे हैं। किसी भी सीन में उन्होंने किसी दूसरे एक्टर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। अपनी किरदार की नेच्यूरेलिटी को बनाये रखा हैं।
लूडो की कहानी में उनकी एंट्री ऐसे होती है। आकाश अपनी फ्रेंड श्रुति चोकसी (सान्या मल्होत्रा) के साथ किसी हॉटल के रूम में रात बिताते हैं। कोई उनकी सीक्रेट वीडियो बनाकर नेट पर ड़ाल देता है। आकाश पुलिस से निराश होकर उस वीडियों को हटवाने के लिए सत्तु भय्या की मदद लेने जाता है। उसी समय वहां तीन लोग और पहुंचते हैं। वह तीन लोग भी इस गेम की तीन गोटियां हैं।
हरी गोटी
हरी गोटी वो गोटी है जिसका कुछ हो ना हो पर वो सबका खेल बिगाड देती है। हरी गोटी के मेटाफर में आलु (राजकुमार राव) हैं। राजकुमार राव मिथुन दा के फैन के किरदार में हैं जो हर बात में उनका स्टाइल मारते हैं। उनका एक सीन जो उनके किरदार की गहराई को समझाता है। उनकी प्रेमिका उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर जा रही है। वह अपने इमोशन को कंट्रोल करते हुए रोते-रोते मिथुन दा के स्टेप निकाल रहे हैं। वह जो किरदार के दिल में एक कशमशाहट है। उनके साथ-साथ दर्शक भी महसूस करता है।
लूडो कहानी में इनकी एंट्री इस तरह होती है। सत्तु भय्या जब भिवंडी का कत्ल करते हैं तो पिंकी (फातिमा सना शेख) का पति वहां गलती से पहुंच जाता है। पिंकी राजकुमार राव के बचपन का प्यार हैं। जिनकी प्यार में बर्बाद होकर वो एक होटल चलाते हैं।
पिंकी को शक होता है कि उसका पति अपने दोस्त से मिलने का बहाना करके किसी लड़की से मिलने जाता है। पिंकी उसका पीछा करती है। वह पीछा करते हुए पिंकी को देख लेता है और अपने दोस्त भिवंडी के घर में घुस जाता है और पिंकी के जाते ही वहां से निकल जाता है। पिंकी को यकीन हो जाता है कि उसका पति सही है उसकी सोच गलत थी।
उसी रात सत्तु भय्या भिवंडी की हत्या कर देते हैं। इल्ज़ाम पिंकी के पति पर आता है। पति अपने मुंह से अपनी असलियत बताता है। पिंकी अपने पति के बचाने के लिए पुराने प्रेमी आलु के पास जाती है। आलु उसके पति को बचाने के लिए एक बार फिर से बर्बाद हो जाता है। पिंकी को जब अंत में पता चलता है कि उसका पति हरामी ही नहीं महा हरामी है तो वो खुद ही उसको मार देती है।
लाल गोटी
लाल रंग तो खतरे रंग होता है। लाल रंग खून का रंग होता है। इस लाल रंग के मेटाफर में बिट्टु (अभिषेक बच्चन) हैं।यह फ़िल्म अभिषेक की उन फ़िल्मों में से एक मानी जायेगी जिन में अभीषेक बच्चन ने अच्छी एक्टिंग की है। इस फ़िल्म में उन्होंने एक गैंगस्टर का किरदार निभाया है। अपनी एक्टिंग से उन्होंने कई बार युवा और सरकार और रावन की याद दिला दी थी।
लूडो कहानी में उनकी एंट्री इस तरह होती है। वह सत्तु भय्या के लिए काम करते हैं। वह एक लड़की के प्रेम में सब कुछ छोड़कर शादी कर लेते हैं। एक बेटी होती है कि सत्तु भय्या उन्हें जेल करा देते हैं। वह पांच साल की सजा काटकर लोटते हैं तो उनकी पत्नी उनके ही दोस्त से दूसरी शादी कर चुकी होती है। वह आदमी सत्तु भय्या से सत्तर लांख का कर्जा लेता है। वह कर्जा चुका नहीं पाता। सत्तु जब भिवंडी को मारकर लोट रहा होता है तो उसे भी पकड़कर ले आता है।
सत्तु उसके बदले में बिट्टु को बुलवाता है। बिट्टु जो पहले तो जाने से मना कर देता है लेकिन जब उसे पता चलता है कि वो सत्तर लांख उसने उसकी बेटी को हॉस्टल भेजने के लिए ही लिए थे तो वो चला जाता है। बिट्टु ही इस खेल का अंत करता है।
नीली गोटी
नीली गोटी वो गोटी है जो मारा मारी के बीच चुपचाप निकल जाने की कोशिश में लगी रहती है। नीली गोटी के मेटाफर में राहुल अवस्थी (रोहित सर्राफ़) हैं। रोहित के सामने बडे-बडे स्टार थे। उसके बाद भी उन्होंने बहुत ही अच्छी एक्टिंग की हैं। रोहित एक ऐसे किरदार में हैं जिनके पास घर नहीं हैं। वह कहीं भी सो जाते हैं।
लूडो कहानी में इनकी एंट्री कुछ इस तरह होती है। सत्तु भय्या जब भिवंडी का कत्ल करते हैं तो यह उनके घर के पास टपरी के नीचे सो रहे होते हैं। यह सत्तु भय्या को मारते हुए देख लेते हैं इसीलिए सत्तु भय्या उसको उठाकर अपने साथ ले जाते हैं। यह चारों एक ही समय में सत्तु के अड्डे पर होते हैं। सत्तु के अड्डे पर गैस सिलेंडर फट जाता है। सत्तु भय्या बेगों में पैसा भरकर एम्बुलेंस में जा रहे होते हैं। रास्ते में राहुल एक नर्श थोमस के साथ मिलकर पैसा लेकर भाग जाते हैं।
इस हादसे में बहुत सारे लोग मारे जाते हैं। उन्हीं की आत्माओं को आकाश में ले जाने के लिए यमराज के किरदार में अनुराग बसु और राहुल बग्गा लूडो खेलते दिखाये हैं।
एक फ़िल्म में पांच प्रेम कहानियां
इस फ़िल्म को देखने वाला जिस नज़रिये से देखना चाहे वो उसकी अपनी मर्जी और विवेक के ऊपर निर्भर करता है। फ़िल्म को अगर लवस्टोरी के तौर पर देखा जाये तो दरअसल यह समाज की अलग-अलग पांच प्रेम कहानियों का एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें हर रंग का फूल मिलेगा।
फ़िल्म के अंत में हर किरदार एक प्रेम कहानी को पूरा करता है। यह फ़िल्म के लेखक और निर्देशक की कामयाबी है कि वो देखने वालों को हर कहानी से जोड़े रखता है। हर प्रेम कहानी के सामाजिक मूल्य अलग हैं जिनको एक पक्ष लेकर समझना या समझाना बहुत ही मुश्किल है।