दिव्येंदु शर्मा मिर्जापुर सीरीज के मुन्ना भय्या के रूप मे हिन्दी भाषी क्षेत्रों में छा चुके हैं। उनके असली नाम से उन्हें कोई जानता हो या ना जानता हो लेकिन मुन्ना भय्या के नाम से सभी जानते हैं। दिव्येंदु शर्मा भले आज शिखर पर हैं। आज जो यू,पी बिहार के बच्चे उनकी स्टाइल में गाली दे रहे हैं। आज जो युवा मुन्ना भय्या जैसा निड़र और पक्के जिगरे वाला बनना चाहते हैं। आज जो युवा उनकी तरह बिंदास ज़िंदगी जीना चाहते हैं तो उन्हें उनकी असल ज़िंदगी के उस सफर को भी देखना चाहिए जिसमें उन्होंने बहुत मुश्किलातों का सामना भी किया है। उनकी ज़िंदगी की कुछ अहम बातें।
ज़िंदगीनामा
दिव्येंदु शर्मा का मिर्जापुर में बोली गई भाषा से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। उनका जन्म 1983 में दिल्ली में हुआ था। उनकी बेसिक पढ़ाई लिखाई भी वहीं से हुई। उन्होंने दिल्ली विश्वविधालय के किरोड़ीमल कालेज से ग्रेजुएशन किया।
दिव्येंदु शर्मा का दिल में ही थिएटर की तरफ रूझान हुआ। उन्होंने कालेज स्तर पर थिएटर करना शुरू किया। थिएटर करते-करते ही उन्होंने इसी में अपना करियर बनाने का मन बना लिया। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने एक्टिंग को और ज़्यादा समझने के लिए एन.एस.ड़ी दिल्ली और एफ.टी.आई.आई पुणे में दाखिले के लिए फार्म भरा। उनका दोनों जगह ही नम्बर आया लेकिन उन्होंने एफ.टी.आई.आई पुणे को चुना।
दिव्येंदु साल 2004 में एफ.टी.आई.आई में दाखिल हो गये। यहां उन्होंने फ़िल्म और एक्टिंग की बारिकयों को समझा। उनकी क्लास के बहुत सारे लोग आज फ़िल्मों में उनके ही साथ काम कर रहे हैं। साल 2011 में दिव्येंदु ने शादी कर ली।
फ़िल्मी सफऱ
फ़िल्म स्कूल से पास आऊट होने के बाद दिव्येंदु भी किस्मत आजमाने के लिए मुम्बई चले आये। यहां वो काफी दिनों तक काम की तलाश में भटकते रहे। अपने एक साक्षात्कार में वो बताते हैं कि वह दिन भर काम की तलाश में जुगाड़ लगाते थे। वह किसी भी तरह 32 रूपये बचाकर रखते थे ताकि रात को भूंका ना सोना पड़ा।
दिव्येंदु को पहली बार माधुरी की फ़िल्म आजा नच ले मे देखा गया। दिव्येंदु में लेकिन एक बात तो है वह जिस फ़िल्म में भी होते हैं अपनी एक्टिंग से अपनी पहचान बना लेते हैं। उनकी पहली फ़िल्म प्यार का पंचनामा थी। उस फ़िल्म में उनका किरदार जितना सरल था उन्होंने उसे उतना ही रोचक बना दिया था। वहीं से दिव्येंदु शर्मा को लोगों ने उनके नाम से पहचाना था।
उसके बाद उनकी अगली फ़िल्म चश्मेबद्दूर आयी। यह फ़िल्म उनके लिए इसलिए भी खास थी क्योंकि फारूक शेख को वो अपना आईडियल मानते थे। इस फ़िल्म के बाद बॉलीवुड के छोटे निर्देशकों ने उन्हें अपना लिया था। उन्हें साईड रोल में टॉयलेट एक प्रेमकथा, बत्ती गुल मीटर चालु, में काम किया।
डिजिटल पर उनकी बदनाम गली, कानपुरिये, शुक्राणु भी रही लेकिन उन्हें कुछ खास पहचान नहीं मिल पा रही थी। उन्हें असली पहचान मिर्जापुर में मुन्ना भय्या से मिली। इस किरदार ने उन्हें देश में ही नहीं देश के बाहर भी प्रसिद्ध कर दिया। वह मिर्जापुर में विलेन होकर भी हीरो से ज़्यादा फैमस रहे। उनका बोला एक-एक संवाद लोगों को जबानी याद है। वह जिस अंदाज से संवाद बोलते हैं आदमी उस पर ना खुलकर हसता और ना ही बुरा मानता है। आज उनके पास फ़िल्मों की कमी नहीं है।
अपनी ही दोस्त के बेटे बने
दिव्येंदु शर्मा के अब तक के फ़िल्मी सफर में सबसे बेस्ट किरदार मुन्ना भय्या का रहा है। इस किरदार को करने के लिए उनके सामने बहुत सी मुश्किलें थीं। मिर्जापुर में वो कालीन भय्या के बेटे बने हैं। कालीन भय्या की दूसरी पत्नी बीना रसिका दुग्गल बनी हैं। रसिका दुग्गल और उनका बहुत पुराना रिश्ता है।
रसिका दुग्गल उनकी क्लासमेट रही हैं। वह दोनों ही एफ.टी.आई.आई में एक्टिंग के स्टूडेंट रहे हैं। एक हम उम्र दोस्त जिसके साथ आपने कई साल एक ही क्लास में बिताये हैं। उसके बेटे का किरदार निभाना ना तो दिव्येंदु के लिए आसान था और ना ही रसिका के लिए आसान था। बावजूद इसके दोनों ने एक्टरों ने बीना और मुन्ना के किरदारों को हमेशा के लिए अमर कर दिया। मुन्ना भय्या हिन्दी सीरीज को वो आईकोनिक किरदार है जिसकी नकल बहुत दिनों तक की जाती रहेगी।
मुन्ना तो ठीक है पर आगे क्या?
मिर्जापुर2 में मुन्ना भय्या के किरदार के अंदर वो खूबियां भी दिखती हैं जो मिर्जापुर के पहले भाग में नहीं थीं। मुन्ना भय्या दूसरे भाग में इसलिए पहले से भी ज़्यादा पसंद किए गये हैं। मिर्जापुर में उनका किरदार तो अमर हो गया लेकिन अब आगे आने वाली फ़िल्मों और सीरीज से उनकी परीक्षा होगी। यह देखना होगा कि वह क्या मुन्ना भय्या वाले किरदार को जोश बाकी किरदारों में भी बनाये रखते हैं या फिर सब कुछ पहले जैसा नॉर्मल हो जायेगा।दिव्येंदु शर्मा की इसी बनारसी भाषा में एक और सीरीज बिच्छु का खेल रिलीज हो चुकी है जिसमें वो लेखक बने हैं।