क्रिमिनल जस्टिस का दूसरा भाग डिज़्नी +हॉटस्टार पर रिलीज हो चुका है। यह 8 एपिसोड की सीरीज देखने वालों का दिमाग खोल देती है। क़ानून और इंसानियत और मीडिया के असली चेहरों को दिखाने की पूरी कोशिश करती है। के बीच एक लकीर है। सीरीज के आखिरी एपिसोड में मीता वशिष्ठ अपने सहयोगी वकील को एक डॉयलॉग बोलती हैं ” प्रभु साहब क्या आपको नहीं लगता कि सारे का सारे क़ानून मर्दों का ही फेवर करते हैं”। यह डॉयलॉग पूरी सीरीज का सार है।
क्रिमिनल जस्टिस सीरीज एक क़ानूनी ड्रामा है। यह सीरीज एक छोटी सी घटना से दर्शकों को अपने साथ जोड़ती है।अनुराधा चंद्रा (कीर्ति कुल्हारी) अपने पति वकील विक्रम चंद्रा (जिस्सु सेनगुप्ता) को एक रात बिस्तर में चाकू मारकर वहां से फरार हो जाती है। विक्रम चंद्रा की नाबालिग बेटी रिया इस घटना की चश्मदीद गवाह है जिसके आधार पर अनुराधा को जेल भेज दिया जाता है। विक्रम चंद्रा क्योंकि बहुत बडा वकील था। बहुत इज्ज़तदार वकील था। उसकी मां विज्जी चंद्रा (दीप्ति नवल) बहुत ही इज्ज़तदार औरत हैं। उसकी मित्र मंदिरा माथुर (मीता वशिष्ठ) बहुत बड़ी वकील हैं। इन सब के चलते विक्रम चंद्रा के सम्मान में कोई भी वकील उसके कातिल का केस लड़कर वकील बिरादरी को अपना दुश्मन बनाने को तैयार नहीं होता है।
वकील माधव मिश्रा (पंकज त्रिपाठी) जिनकी नई नवेली शादी हुई है। वह इस केस को लड़ने के लिए तैयार होता हैं। उसके सामने मुश्किल आती है कि अनुराधा कुछ भी सच बताने को तैयार नहीं है। वह अपने आपको क़ातिल मान रही है। महिला होने के नाते निख़हत हुसैन (अनुप्रिया गोयनका) माधव की मदद करती है। वह अनुराधा से बात करती है तो धीरे-धीरे रहस्यों से पर्दा उठता है।
अनुराधा को सजा दिलाने वाले बहुत है। पुलिस इंसपेक्टर भी यही चाहता है। वकील एसोशिएसन भी यही चाहता है। अनुराधा की बेटी भी वही चाहती है। अनुराधा की सास भी वही चाहती है। अनुराधा खुद भी वही चाहती है। ऐसे माधव और निख़हत को उसे बचाना और भी मुश्किल हो जाता है।
दोनों तरफ से क़ानूनी दांव पेंच चले जाते हैं। दर्शक आठ एपिसोड की कहानी सिर्फ इसलिए लालच में देख लेता है कि शुरू के 10 मिनट में जो हुआ आखिर उसका सच क्या है?
महिलाएं जो सहती हैं कहती नहीं
यह सीरीज वैसे तो सिर्फ अनुराधा चंद्रा की कहानी है। लेकिन जैसे ही दर्शक अनुराधा के बारे में और ज़्यादा जानना चाहता है वहां उसे और मज़ेदार किरदार मिलते हैं। इनमें सबसे मजेदार माधव माथुर (पंकज त्रिपाठी) अनुराधा के वकील हैं। इस केस को लड़के लिए जो अपनी सुहाग रात छोड़कर पटना से मुम्बई आते हैं। हाथों में मेंहदी लगी है लेकिन सब से अपनी शादी छिपा रहे हैं।
अनुराधा के केस से जुडे हर आदमी की अपनी कहानी है जो औरत के ख़िलाफ़ मर्दों के अलग-अलग रूप दिखाती है। कहानी को लेखक ने जानबूझकर उस तरफ मोड़ा है ताकि हर मर्दों के बहुत सारेे रूप दिखा सके। अनुराधा अपने पति की हत्या इसलिए करती है कि वो उसके साथ जबर्दस्ती जानवरों जैसे सबंध बनाता है। उसका केस लडने वाला वकील माधव जो अपनी गांव की पत्नी को शहर के लोगों से मिलवाता भी नहीं है। उसे अपने लायक नहीं समझता है। माधव की सहयोगी निख़हत के बाप उसकी मां को और उसे छोड़कर किसी और औरत के साथ रहता है। निख़हत की अपने बाप से नहीं बनती है। इस केस से जुडी महिला पुलिस इंस्पेक्टर को अपने पति पुलिस इंसपेक्टर के साथ डयूटी पर भी पुलिस से ज़्यादा उसकी पत्नी होने का एहसास होता रहता है। वकील प्रभु जो पितृसत्ता को सर्वोपरी मानता है। अनुराधा का मनोचिक्तसक ही उसके साथ सबंध बनाकर उसे प्रेगनेंट कर देता है। विज्जी चंद्रा जो अनुराधा के पेट में पल रहे बच्चे को हासिल करने के लिए दांव पेंच चल रही है। हर किरदार की अपनी एक कहानी है जिसका छोर पितृसत्ता वाली सोच से मिलता है। इशानी नाथ (शिल्पा शुक्ला) महिला कैदियो की बोस बनी हुई है। जो अपने बिजनेसमैन पिता की हत्या की सजा काट रही है। वहीं एक महिला अपने बच्चे के साथ रह रही है। हर किरदार की अपनी कहानी है जो मैन विक्टिम अनुराधा का लिए गढ़ी गई है। यानी हर कहानी के छोर पर पितृसत्ता का मोहरा रखा मिलता है।
यह सब सब प्लाट कहानी में कहीं फिट बैठते हैं तो कहीं ऐसा भी लगता है कि कहानी के प्लाट को चमकाने के लिए इनका इस्तेमाल किया गया है। लेखक ने कुछ किरदारों के जरिए महिलाओं के भी स्टेटस के हिसाब से शोषित होने की थ्योरी की तरफ भी इसारा किया है। अनुराधा को बाथरूम जाना है लेकिन गंदा होने के कारण नहीं जा पा रही है। जैल की दबंग लेडी एक गरीब औरत से उसके लिए बाथरूम साफ कराती है।
दर्शकों को अंत तक जोडे रखती है
कहानी को जिस तरह से बुना गया है। दर्शक अगर पहले दो एपिसोड देख लेता है तो फिर उसकी सारे देख लेने की इच्छा आठ एपिसोड के बाद ही ख़त्म होती है। कहानी में क़ानूनों के तोड़े-मरोड़े जाने को बहुत ही अच्छे से दिखाया है। आजकल मीडिया की क्या भूमिका है। मीडिया किस तरह केस को प्रभावित करती है। लेखक ने उस तरफ भी ध्यान खींचा है। निर्देशक ने अब तक हिन्दी फ़िल्मों में देखते आये अदालत और पुलिस तहक़ीकात से अलग दिखाया है जो असल लगता है।
महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार को उसने बहुत ही बारीकी से दिखाने की कोशिश तो की है लेकिन कई जगह सवाल भी उठते हैं। जैसे अनुराधा अंत तक क्यों नहीं बता रही है कि उसका पति उसके साथ जानवरों जैसा बर्ताव करता था। निर्देशक ने सिर्फ इस बात को बताने के लिए आठ एपिसोड खींचे हैं। हालांकि बहुत सारे देखने वाले इस बात को पहले सीन में जान गये होंगे लेकिन फिर भी अपने आपको बाकी एपिसोड देखने से नहीं रोक पाये होंगे।
कुछ को छोड़कर एक्टिंग सभी की सही रही
पंकज त्रिपाठी को ज़्यादातर दबंग गुंडे के रूप में देखा है। उनका एक अलग ही रूप है जो देखने में मज़ा आता है। वह छोटे इलाकों से मुम्बई आने वाले एक वकील के किरदार में हैं। वह बीच-बीच में अपने अंदाज़ से हंसाने की कोशिश भी करते रहते हैं। निख़हत के किरदार में अनुप्रिया ने भी अच्छा किरदार निभाया है। इसके अलावा दीप्ति नवल, मीता वशिष्ठ, शिल्पा शुक्ला, आशीष विधार्थी ने भी इमानदारी से अपना किरदार निभाया है।
यह सीरीज जिसकी कहानी के इर्द गिर्द घूमती है। अनुराधा के किरदार में कीर्ति कुल्हारी ने अच्छा काम किया है। उनके किरदार के जबकि बहुत सारे रूप थे। वह एक मां भी थीं, एक कातिल भी थीं, एक मनोरोगी भी थीं, एक होने वाले बच्चे की मां भी थीं। इन सभी किरदारों को उन्होंने बहुत ही अच्छे समझा भी और निभाया है।
सीरीज की सिनेमाटोग्राफी साधारण ही है। निर्देशक ने जिस तरह से अदालत और जेल को दिखाया है वो सीरीज को थोड़ा और रियल बना देता है।
देखें ना देखें?
फ़िल्म सीरीज अच्छी हो या बुरी हो। हर किसी के देखने का अपना नज़रिया होता है। सीरीज महिलाओं के मुद्दे को गम्भीरता से छूती है। उसे गम्भीरता से दिखाने का प्रयास भी करती है। इसमें भी मनोरंजन का खास ख़्याल रखती है। निर्देशक और लेखक स्पीच देने की जगह सिनेमा की भाषा में दर्शकों तक अपनी बात पहुंचाने में लगभग कामयाब रहा है।
निर्देशक: अर्जुन मुखर्जी, रोहन शिप्पी
कलाकार: पंकज त्रिपाठी, कीर्ति कुल्हारी, अनुप्रिया गोयनका, दीप्ति नवल, मीता वशिष्ठ, आशीष विधार्थी, शिल्पा शुक्ला
प्लेटफार्म: डिज्नी+हॉटस्टार