अमेरिका में रहने वाले भारतीय लोगों के जीवन पर आधारित सीरीज मेट्रो पार्क का दूसरा भाग इरोस नाउ पर 12 एपिसोड के साथ रिलीज हुआ है। यह सीरीज अमेरिका में रह रहे भारतीय लोगों के एहसास को ज़िंदा करती है। उनके अंदर अपने कल्चर को बचाये रखने की कशमकश की जद्दोज़हद को दिखाती है। उन उम्मीदों को ज़िंदा रखती है जिन्हें वो कभी अपने देश छोड़ आये थे।
इसी के साथ दूसरी तरफ तकनीक और आधुनिकवाद का जाल जिसमें ना चाहकर भी आदमी उलझता जा रहा है। आदमी अपनी ज़िंदगी के खालीपन को तकनीक का सहारा लेकर भरने की कोशिश कर रहा है। उस तकनीक से सब कुछ हासिल कर लेने के बाद भी उसका वो बचपन उस पर हावी है जो उसने बिना तकनीक के गुजारा है। तकनीक के बिना गुजारा हुआ कल तकनीक के साथ गुजारे आज पर हावी है। आदमी तकनीक के पंख लगाकर उड़ना तो चाहता है लेकिन बचपन की हवा उसे झकझोर देती है।
मेट्रो पार्क अमेरिका में बसे एक हिन्दुस्तानी परिवार की कहानी है। इसमे कल्पेश पटेल (रणवीर शौरी) भारत के गुजरात से आकर अमेरिका के मेट्रो पार्क सिटी में बस गये हैं। वह एक जनरल स्टोर चलाते हैं जिसमे वो अपने इंडियन असिस्टेंट बिट्टू (पितोभाश) के साथ मिलकर एक फाइनेंस कम्पनी चलाने की कोशिश करते हैं। इस काम में सफल होने की जगह उनको नुकसान ही होता है, क्योंकि कल्पेश तकनीक का इस्तेमाल नहीं करता है। वह स्टोर में चोरी रोकने के लिए कैमरे की जगह एक इंडियन आदमी को स्टोर के बाहर बिठाकर रखता है।
कल्पेश की पत्नी पायल पटेल (पुरबी जोशी) जो एक पार्लर चलाती हैं। वह हमेशा यूटयूब पर वीडियो बनाती रहती हैं। इसके अलावा उनकी बहन भी इसी सिटी में रहती है जो कानन (ओमी वेदया) की पत्नी हैं। कानन को बेटा होता है उसी के नाम करण से मेट्रो पार्क 2 की कहानी शुरू होती है। उसके जन्मदिन पर कहानी खत्म होती है। इस बीच कहानी में बहुत से उतार चढ़ाव आते हैं। हर किरदार की अपनी एक अलग कहानी है जो किसी ना किसी तरह से अमेरिका में अपने देश को याद कर रहा है। वह किसी ना किसी तरह से अपने बचपन को, अपने गांव को अमेरिका में तकनीक के सहारे जीने की कोशिश कर रहा है।
बिट्टू अपने अधूरे प्यार को तकनीक के सहारे जी रहा है। वह अमेरिका में बैठकर हिन्दुस्तान में अपने एक तरफा प्यार को फूल भिजवा रहा है। वह अमेरिका में बैठा है लेकिन उसके बाद भी फूल लड़की के बाप के हाथों पकड़े जाने से ड़र रहा है। यह बात इंडिया में रहने वाले लोगों को शायद उतना फील ना हो लेकिन अमेरिका में रहने वाले किसी भारतीय को जरूर उसका देश याद दिला देगी।
तकनीकी बनाम रियल
मेट्रो पार्क की कहानी इस बात की तरफ ध्यान खींचती है कि आदमी चाहे कहीं भी चला जाये उसके संस्कार उसका पीछा नहीं छोड़ते हैं। कल्पेश को अपने स्टोर में चोरी रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरे पर भरोसा नहीं है उसे एक सीनियर सिटीजन इंडियन पर भरोसा है जिसे सही से दिखाई भी नहीं देता है।
कल्पेश की सासू जी जिनका वीजा रिजेक्ट हो जाता है। उनकी जगह कानन एक रोबोट ले आता है जिसे रोबोट की स्क्रीन पर वो हमेशा ऑनलाइन इन लोगों से बात कर सकती हैं। वह इंडिया से ऑपरेट करते हुए घर के अंदर कहीं भी जा सकती हैं। किसी से भी बात कर सकती हैं। वह इंडिया से ही सब पर नज़र बनाये रहती हैं। वह कानन के बच्चे को लोरी सुनाती रहती हैं। पूजा करती रहती हैं। कल्पेश की पत्नी उस रोबोट को एक साडी पहनाकर मां की तरह ही दस दिन के लिए अपने घर लेकर आती है। सीरीज का यह हिस्सा जहां दर्शक को हंसने पर मजबूर करता है वहीं बहुत कुछ सोचने के लिए भी मन में कई सवाल पैदा कर देता है। तकनीक और असली एहसास के बीच के फर्क को भी दिखाता है।
कानन जो कि एक अमीर आदमी है। उसका बड़ा सा बंगला है। उसके पास सब कुछ है लेकिन वो उस बड़े से घर में मुर्गी पाल रहा है। वह उसके अंडो को बड़ी हिफाजत से रखता है। इसके अलावा बिट्टू है जो पैसा कमाने की होड़ में अमेरिका चला तो गया है लेकिन उसका फ़िल्म बनाने का सपना अधूरा है। उसका प्यार अधूरा है। वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए दिन में स्टोर संभालता है और रात में एक जॉम्बी फ़िल्म शूट करता है। वह गांव को याद करते हुए डिप्रेशन में चला जाता है। कमाल की बात तो ये हि कि वो जिस डॉक्टर के पास जाता है वो पहले से ही अपने बचपन को याद करके उदास है।
इसी बीच अमेरिका में रह रहे ये लोग अपने अमेरिकी बच्चों को इंडियन कल्चर सिखाने की पूरी कोशिश में लगे रहते हैं। वह अमेरिका में भी अपने बच्चों को इंडियन डिश खाने और बनाने पर जोर देते हैं। उन्हें एक लड़के और लड़की के कमरे में अंदर बैठकर पढ़ने पर भी शंका होती रहती है। भारतीय और अमेरिकी तड़के के साथ सीरीज का हर एपिसोड कभी हंसाता तो है तो कभी सोचने पर मजबूर कर देता है।
रणवीर सौरी जो कि अलग-अलग किरादरों को करने के लिए जाने जाते हैं। उनकी लास्ट सीरीज हाई को अगर देखें तो इस सीरीज में उनका किरदार एकदम से अलग है लेकिन उन्होंने एक अधेड गुजराती आदमी का जो किरदार निभाया है उसे देखने वालों को उनकी प्रतिभा का अंदाजा हो जाता है। इसके अलावा उनके साथ में पुरबी जोशी, ओमी वेद्या और पितोभास ने भी अपने किरदारों के साथ इमानदारी दिखाने की पूरी कोशिश की है।
देखें ना देखें?
सीरीज विदेशों में रहने वाले भारतीय लोगों के जीवन के उन पहलूओं को छूने की कोशिश करती है जिन्हें विदेश में रहने वाला हर भारतीय महसूस करता होगा। सीरीज की अच्छी बात है कि उन भारतीय लोगों की फीलिंग को भी दिखाने की कोशिश करती है जिनके बच्चे विदेशों में रहते हैं और वो किस तरह से उनको याद करते हैं। सीरीज विदेश में रह रहे एक परिवार के सहारे बहुत कुछ कहने की कोशिश करती है।
निर्देशक: अबी वर्गीज और अजयन वेणुगोपालन
कलाकार: रणवीर शौरी, पुर्बी जोशी, पितोभाश, ओमी वेद्या, वेगा तमोटिया, सरिता जोशी।
प्लेटफार्म: इरोस नाउ