कहानी नब्बे के दशक की मुम्बई पुलिस और माफियों के बीच मारा-मारी की है। सन 1995 तक जिन्हें फ़िल्में देखने की तमीज़ आ चुकी थी। वह इसी तरह की कहानियां देख-देख कर बड़े हुए हैं। मुम्बई के माफिया और पुलिस के बीच भिडंत की कहानियों पर कम से कम पचास फ़िल्में बन चुकी होगीं। यह प्लाट इतना पुराना हो चुका है कि बॉलीवुड में इसे अलग से एक नाम दिया जा सकता है। इस सीरीज़ को लिखने वाले लेखक अपूर्वा लखिया और चिंतन गांधी खुद इस से पहले इस प्लाट पर शूट आऊट एण्ड लोखंडवाला, हसीना, जंजीर, जैसी फ़िल्में कर चुके हैं।
इस प्लाट पर कम्पनी, सत्या, वन्स अपोन ए टाइम मुम्बई जैसी कामयाब फ़िल्में पहले ही बन चुकी हैं। यह फ़िल्में लोगों के दिमाग पर इतनी हावी हैं कि इन फ़िल्मों को दर्शकों के दिमाग से निकालने के लिए कुछ नई बात कहनी होगी। मगर अफसोस इस प्लाट पर अब कोई नई बात देखने को ही नहीं मिलती। यह प्लाट बॉलीवुड के लिए ऐसा है कि इस पर बनाने वाले के पास बस पैसे हों कहानी तो कुछ ना कुछ बन ही जाती है। मुमभाई सीरीज़ की रूपरेखा को अगर दो शब्दों में समझा जा सकता है तो वो एक शब्द क्लास 83 होगा और दूसरा एक थी बैगम होगा। क्लास 83 मुम्बई क्राइम पर बॉबी देओल की फ़िल्म है और एक थी बैगम मुम्बई क्राइम पर आधारित एमएक्स प्लेयर की सीरीज है। जो अभी कुछ ही दिन पहले ताजा ताजा ओ.टी.टी पर आयी हैं।
जैसा कि मुम्बई अंडरवर्ल्ड पर बनी फ़िल्मों में एक ऐसा माफिया होता है जो मुम्बई पर राज कर रहा होता है। उसके संरक्षण में छोटे-छोटे माफिया अपना धंधा चला रहे होते हैं और उनका धंधा पुलिस की ही मदद से चल रहा होता है। रिश्वतखोर पुलिस वालों के बीच एक ईमानदार पुलिस वाला होता है जो पुलिस में आने से पहले ही कसम खा चुका होता है कि मुम्बई से क्राइम का ख़ात्मा कर देगा। मुमभाई में वो पुलिस वाला भास्कर (अंगद बेदी) हैं।
जैसा कि हर अंडरवर्ल्ड पर बनी कहानियों में एक माफिया ऐसा होता है जिसकी आत्मा शुद्द होती है। वह आदमी बुरा होता है पर इंसान अच्छा होता है। वह लोगों को मारता है तो लोगों की मदद भी करता है। वह हीरों को मारता नहीं है छोड़ देता है। इस सीरीज़ में वो माफिया रामा शेट्टी (सिकंदर खेर) हैं।
भास्कर बचपन में अपने घर से भागकर मुम्बई आता है। वह हॉटल में काम करते-करते एक दिन पुलिस में भर्ती हो जाता है। वह अपने सीनियर केलकर की तरह ही भाई लोगों को ऊपर पहुंचाना शुरू कर देता है। वह धीरे-धीरे मुम्बई का एनकाऊंटर स्पेशलिस्ट बन जाता है। भास्कर की शोहरत और बहादुरी ही उसके लिए मुसिबतों का पहाड़ बन जाती है। भास्कर की शोहरत से उसके सीनियर अफसर ही उस से जलने लगते हैं। वह खुद ही उसकी जान के दुश्मन हो जाते हैं।
भास्कर गुंडों के बीच रहकर ही गुंडों का ख़ात्मा करता है। एक हॉटल में काम करने वाले भास्कर से एक दिन मुम्बई का बडे से बडा अपराधी तौबा मांगता है। तौबा लेकिन उसकी डिक्शनरी मे ही नहीं है। वह बस एक ही बात जानता है जुर्म का ख़ात्मा मुज़रिम के ख़ात्में से ही होता है।
सिनेमा की नज़र
मुमभाई सीरीज़ में अगर कोई नई बात खोजें तो बहुत मुश्किल होगी। वह डांन्स बार में नाचती हुई औरतें और उनके बीच गुंडों की मीटिंग चलती हुई। वही छोटी-छोटी गलियों में एनकाऊंटर चलता हुआ। हर सीन इतनी बार देखा जा चुका है कि देखते ही जी भर जाता है। इसके बाद भी अगर सीरीज में कुछ नया है तो वो है बात-बात पर गंदी गालियां और सिकंदर खेर का रामा स्वामी वाला किरदार।
सिकंदर खेर एक मद्रासी किरदार में हैं। वह पूरी सीरीज़ में उस खिलाड़ी की तरह दिखते हैं जो अच्छा प्रदर्शन करता है लेकिन बाकी टीम का साथ नही मिलता। सिकंदर खेर ने एक्टिंग से सीरीज़ को एक अच्छे स्तर तक ले जाने की पूरी कोशिश की है। इस काम मे लेकिन किसी और ने उनका साथ नहीं दिया।
निर्देशक अक्षय चौबे जिनका नाम पिछले कुछ समय से जी5 की कई सारी सीरीज़ के साथ जुड़ा है। इन्होंने कभी लकी ओय लकी जैसी फ़िल्म में सह निर्देशक के तौर पर काम किया था। वह जी5 की कोड एम जैसी सीरीज़ से भी जुड़े हुए थे। इस सीरीज़ में लेकिन कहीं नहीं लगा कि उन्हें इतने काम करने का तजुर्बा है। निर्देशक अगर अपने डी.ओ.पी को यह नहीं दिखा सकता है कि उसे क्या शूट करना है तो पिक्चर फिर डी.ओ.पी के नज़रिये से ही शूट जाती है। इस सीरीज़ की कमजोर लाइटिंग सीरीज के निर्देशक और डी.ओ.पी का तजुर्बा बता देती है। किसी भी निर्देशक का सबसे पहले काम होता है कि हर सीन को ऐसा नया क्रिएटिव बनाना कि देखने वाले को हर बार कुछ नयापन लगे। इस 11 एपिसोड की सीरीज से एक भी ऐसे सीन की उम्मीद नहीं की जा सकती है। सिवाये इसके की एक पत्रकार को बहुत ही अतरंगी किरदार और लड़कियों का सप्लायर दिखाया है।
कोई क्यों देखे
किसी भी फ़िल्म को देखने का हर किसी का अपना एक नज़रिया होता है। दुनिया की हर फ़िल्म में कुछ ना कुछ ऐसी बात होती ही है जो किसी ना किसी को पसंद आ जाती है। इस लिहाज़ से कुछ बातें इसमें भी हो सकती हैं जिनकी वज़ह से सीरीज़ को देखा जा सकता है। लेकिन जरूरी नहीं को वो बातें सभी को अच्छी लगें।